04-11-2001   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

"सत्यवादी बनो और समय प्रमाण रहमदिल बन बेहद की वृत्ति, दृष्टि और कृति बनाने के दृढ़ संकल्प का दीप जलाओ"

आज प्यार के सागर बापदादा अपने अति प्यारे सिकीलधे मीठे-मीठे बच्चों से मिलन मनाने आये हैं। आप सब भी मिलन मनाने आये हैं ना! भाग-भाग कर आये हैं। तो बापदादा भी बच्चों से मिलने के लिए भाग-भाग के आये हैं। आप सभी तो इस लोक से आये हो और बापदादा परलोक और सूक्ष्मलोक से आये हैं। तो सबसे दूर से कौन आया है? कौन दूरदेशी है? डबल फारेनर्स दूरदेशी हैं? नहीं। सबसे दूर से दूर, दूरदेशी तो बाप ही है। बापदादा को इस बारी डबल विदेशी वा भारतवासी बच्चों की एक बात पर बहुत नाज़ है। कौन-सी बात पर नाज़ है? बोलो। विशेष डबल विदेशी बच्चों की हिम्मत देख बापदादा को नाज़ है कि कैसी भी परिस्थिति में बाप से मिलने के लिए पहुँच ही गये हैं। ड्रामा ने खेल भी दिखाया लेकिन बाप और बच्चों के मिलन को ड्रामा भी रोक नहीं सका। तो ऐसे हिम्मत वाले बच्चों पर बापदादा विशेष वरदानों की वर्षा कर रहे हैं।

आज इस घड़ी जो भी बच्चा जो भी वरदान चाहे वह वरदान मिलेगा। सहज मिलेगा लेकिन इस वरदान को रोज़ अमृतवेले और कर्मयोगी स्थिति में बार-बार दिल से याद करना। दिलशिकस्त नहीं होना। वरदान प्राप्त है सिर्फ जैसे स्थूल नयनों के बीच में निरन्तर बिन्दी चमकती है ना! ऐसे सदा नयनों में बाप बिन्दी को समाकर रखना। रख सकते हो या मुश्किल है? (सहज है) तो जैसे स्थूल बिन्दी निरन्तर है, ऐसे नयनों में निरन्तर बाप बिन्दी भी समाया हुआ हो। समा लिया? फिट हो गया? निकल तो नहीं जायेगा? अगर नयनों में निरन्तर बाप बिन्दी समाया हुआ है तो और किसी तरफ भी नयन आकर्षित नहीं होंगे। मेहनत से छूट जायेंगे। और तरफ नज़र जायेगी ही नहीं। बिल्कुल सेफ हो जायेंगे। कुछ भी हो जाए लेकिन नयनों में सदा बिन्दी बाप समाया हुआ हो। सदा नयनों में समाया हुआ होगा तो दिल में भी वही समाया हुआ होगा। तो दिल में और नयनों में समाने की विधि है - बापदादा, साहेब को राज़ी करना। तो साहेब राज़ी है? आप समझते हो बापदादा साहेब आपके ऊपर राज़ी है? कितने परसेन्ट राज़ी है? (कोई ने कहा 99, कोई ने कहा 75 परसेन्ट) आफरीन है। बापदादा को राज़ी करना बहुत सहज है। बापदादा को राज़ी करने का सहज साधन है ‘‘सच्ची दिल’’। सच्ची दिलपर साहेब राज़ी है। हर कर्म में सत्यवादी। सत्यता महानता है। जो सच्ची दिल वाला है, वह सदा संकल्प, वाणी और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में राज़युक्त होगा अर्थात् राज़ को समझ करने वाले, चलने वाले; और हम कहाँ तक राज़युक्त हैं - उसको परखने की निशानी है - अगर राज़ जानता है तो वह कभी भी अपने स्व-स्थिति से नाराज़ नहीं होगा अर्थात् दिलशिकस्त नहीं होगा और संकल्प में भी, वृत्ति से भी, स्मृति से भी, दृष्टि से भी किसी को नाराज़ नहीं करेगा; क्योंकि वो सबके वा अपने संस्कार-स्वभाव को जानने वाला राज़युक्त है। तो बाप को राज़ी करने की विधि है - राज़युक्त चलना और राज़युक्त अर्थात् न अपने अन्दर नाराज़गी आये, न औरों को नाराज़ करे।

सदा समय अनुसार अपने मन, बुद्धि को स्वप्न तक भी सदा शुभ और शुद्ध रखो। कई बच्चे रूहरूहान में कहते हैं - बापदादा तो शक्तियां देता है लेकिन समय पर शक्ति यूज़ नहीं होती। बापदादा विशेष सब बच्चों के साथी होने के सम्बन्ध से विशेष ऐसे समय पर एकस्ट्रा मदद देते हैं, क्यों? बाप जिम्मेवार है बच्चों को सम्पन्न बनाए साथ ले जाने के लिए। तो बाप अपनी जिम्मेवारी विशेष ऐसे समय पर निभाते हैं लेकिन कभी-कभी बच्चों के मन की कैचिंग पावर का स्विच आफ होता है, तो बाप क्या करे? बाप तो फिर भी स्विच आन करने की, खोलने की कोशिश करते हैं लेकिन टाइम लग जाता है। इसलिए जब फिर स्विच आन हो जाता है तो कहते हैं - करना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया। तो सदा अपने मन की कैचिंग पावर, जिसको आप कहते हैं टचिंग, उस टचिंग व कैचिंग पावर का स्विच आन रखो। माया कोशिश करती है आफ करने की, सेकण्ड में आफ करके चली जाती है, इसीलिए जैसा समय नाज़ुक होता जायेगा, अभी होना है और। डरते तो नहीं हो ना? बापदादा ने पहले भी कहा कि आप सबने वर्ष क्यों मनाया है? कौन-सा वर्ष मनाया है? संस्कार से संसार परिवर्तन का। पक्का है ना! मनाया है ना! या भूल गये हैं? (मना रहे हैं) तो जब बच्चों ने संसार परिवर्तन का पक्का संकल्प लिया है तो प्रकृति बाप से पूछती है कि मैं तैयारी करती हूँ, सफाई करने की लेकिन सफाई करने वाले जो निमित्त हैं वह करते-करते सोच में पड़ जाते हैं, दुविधा में पड़ जाते हैं करें या नहीं करें। जल्दी करें, धीरे से करें, तो मैं क्या करूं! प्रकृति पूछती है, तो बापदादा प्रकृति को क्या जवाब दे? डबल विदेशी बोलो। (थोड़ा इन्तजार करे) यह तो ठीक जवाब नहीं है। अगर डबल विदेशी इन्तजार करेंगे तो फिर प्लेन नहीं मिलेंगे। अभी तो प्लेन मिल गये ना। सोते-सोते आये हो ना प्लेन में! आराम से आ गये ना। सारी सभा में से किसी को भी आने में मुश्किल हुई? हाथ उठाओ। (एक ने कहा कि हमारा प्लेन एक बार वापस चला गया) टाइम पर पहुँच तो गई। यह हिम्मत की बात है। जो थोड़ा डरे तो बैठ गये। आप लोगों ने दृढ़ संकल्प किया, जाना ही है तो पहुँच गये। सिर्फ एक का प्लेन लौटा, बस ना। उसकी कोई बात नहीं, फिर अच्छा मिलेगा। अभी आगे तो प्रकृति को, सफाई करने वालों को सोच में नहीं डालो क्योंकि स्थापना वाले अभी भी कभी-कभी सोच में पड़ जाते हैं। क्या करें, ऐसे करें, नहीं करें! ठीक होगा या नहीं ठीक होगा? एकदम स्पष्ट हो हाँ या ना। यह राइट है, यह रांग है - क्लीयर हो। तो प्रकृति आपके वर्ष मनाने के कारण तैयारी तो करेगी। अभी भी करा रही है लेकिन स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माओं को अभी किसी भी बातों में चाहे स्व प्रति, चाहे औरों के प्रति सोचने में समय नहीं लगाना चाहिए। सेकण्ड में क्लीयर टचिंग हो। बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता है? (सेकण्ड) तो जब प्रैक्टिकल लाइफ में बिन्दी लगाते हो तो सेकण्ड लगता है? कोई भी बात में बिन्दी लगाने में या बिन्दू नयनों में बिन्दी बाप को समाओ तो मेहनत से छूट जायेंगे रूप स्थिति में स्थित होने में सेकण्ड लगता है? मानो कोई बात आपके सामने आ गई, उसको बिन्दी लगाने में सेकण्ड लगता है? पाण्डवों को सेकण्ड लगता है? (कभी-कभी) पाण्डवों को बिन्दी लगाने में टाइम लगता है? यह तो कह रही हैं सेकण्ड लगता है। शक्तियों में शक्ति है। (पाण्डव सच बोलते हैं) नहीं, दोनों सच्चे हैं, क्योंकि उन्हों की बिन्दी अभी लगती होगी, आपकी अभी नहीं लगती होगी, इसलिए फर्क हो गया। बाकी तो सब सच्चे हैं। सच्चे दिल वाले हैं। अच्छा।

हाल तो फुल है। (नीचे पाण्डव भवन में भी बैठे हैं) नीचे तो बैठे हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। जो देश-विदेश में इसी याद में बैठे हैं - बापदादा मधुबन में आ गये। अपने-अपने दूरदेशी दृष्टि, दूरबीन से देख रहे हैं। तो वह भी अभी बाबा के सामने आ रहे हैं कि कैसे दूर बैठे भी मन से मधुबन में हैं। आपके इस साकार वतन के यह साधन तो नीचे-ऊपर हो सकते हैं लेकिन यह आध्यात्मिक दूर दृष्टि, दूरादेशी दृष्टि कभी खराब नहीं हो सकती। तो बापदादा के सामने सभी चारों ओर के सेवाकेन्द्र के बच्चे दिखाई दे रहे हैं। अच्छा।

दीवाली मना ली? संगमयुग है ही मनाने का युग। चाहे अन्तर्मुखी हो, अतीन्द्रिय सुख की मौज़ मनाओ। चाहे सेवा में महादानी बन आत्माओं के प्रति महादान देते हुए मनाओ, चाहे आपस में रूहरूहान करो, डांस करो, सम्बन्ध-सम्पर्क से एक-दो की विशेषता को देखो, विशेषता की खुशबू लो, सदा मनाना ही मनाना है। गंवाने का समय समाप्त हो गया। गंवाने का युग तो नहीं है ना? अभी मनाने का और कमाने का युग है, जमा करने का युग है। तो बापदादा सदा हर बच्चे को यही देखता रहता, तो मना रहे हैं, किसी भी रूप में मनाना ही है क्योंकि संगम पर ही गंवाना और मनाना, दोनों का नॉलेज है। इसीलिए गंवा के फिर मनाना उसका महत्त्व होता है। अभी गंवाने को बिन्दी लगाओ। स्टॉप। गंवाना नहीं है। एक संकल्प भी गंवाना नहीं है। कमाने के समय पर गंवायेंगे तो कमायेंगे कब? फिर तो समय मिलना नहीं है। चेक करो जो भी खज़ाने हैं, सबसे बड़ा खज़ाना कौन-सा है? संकल्प, समय, ज्ञान का खज़ाना, प्रत्यक्ष जीवन में आये। ज्ञान सुनाना और सुनना यह फर्स्ट स्टेज है लेकिन ज्ञान अर्थात् नॉलेज। नॉलेज को क्या कहते हो? नॉलेज लाइट है, माइट है, कहते हो ना! तो ज्ञान वा नॉलेज का अर्थ है, इस संकल्प में, बोल में, कर्म में लाइट और माइट है तब कहेंगे नॉलेजफुल।

कुमारियां नॉलेजफुल बनने वाली हैं ना? सिर्फ कोर्स कराने वाली नहीं बनना। भाषण करने वाली नहीं बनना। साथ-साथ नॉलेज की लाइट-माइट, संकल्प, बोल और कर्म में हो। कुमारियों से तो बापदादा का विशेष प्यार है। क्यों? अपने जीवन का फैंसला कर लिया। कर लिया है या करना है? अच्छी तरह से सोच लिया या वहाँ जाके सोचेंगी? पक्का सोच लिया है तो मुबारक हो। देखो इतने हैण्डस तैयार मिलेंगे आपको। जो कुमारियां ट्रेनिंग कर रही हैं वह हाथ उठाओ। कितनी संख्या है? (80) जो अभी सेवा में नहीं लगी हुई हैं, सेन्टर नहीं सम्भालती हैं, वह हाथ उठाओ। गिनती करो, आधे हैं। अच्छा इतने हैण्ड तो मिलेंगे ना! राइट हैण्ड या लेफ्ट हैण्ड? राइट हैण्ड बनेंगे ना! अच्छा है। कुमारियां हैं ना तो बापदादा कुमारियों को सेन्टर का घर भी देता और वर तो मिला ही है। हमेशा घर और वर दो चाहिए। कुमारियों को वर तो मिल गया, अभी घर भी मिलेगा, सेन्टर मिलेगा। कुमारों को भी मिलता है। कुमार समझते हम पीछे क्यों। पीछे नहीं आगे हो। कुमारों के बिना भी सेवा कहाँ चलती है। कोई भी सेन्टर पर देखो, अगर हार्ड वर्कर कुमार नहीं हों तो बहनें कुछ नहीं कर सकती। दोनों ही ज़रूरी हैं। इसीलिए पाण्डवों का भी नाम है तो शक्तियों का भी नाम है। दोनों का नाम है। अच्छा।

आप सबके देश-विदेश की मीटिंग्स का समाचार बापदादा के पास पहुँचा। इस वर्ष में चाहे देश में, चाहे विदेश में, देश में कान्फ्रेन्सेज़, स्नेह मिलन ज्यादा हुए हैं और विदेश में भिन्न-भिन्न प्रोजेक्ट चला रहे हैं। लेकिन बापदादा ने देखा कि सेवा में लगन भी है और सेवा की गति में तीव्रता भी है। दोनों हैं। समय अनुसार हर प्रोजेक्ट या कान्फ्रेन्स या स्नेह मिलन कहो, कोई नयनों में बिन्दी बाप को समाने की विधि है - बापदादा साहेब को राज़ी करना भी प्रोग्राम जो भी चलता है, उसमें सिर्फ समय प्रमाण टॉपिक को उसी रूप से रखना ज़रूरी है क्योंकि जिस समय किसको पानी की प्यास है, और आप उसको 36 प्रकार का भोजन दे दो तो वह स्वीकार करेगा? तो प्रोजेक्ट कोई भी है, टापिक कोई भी है लेकिन इस समय सर्व आत्माओं को चाहिए - शान्ति और स्नेह। शान्ति के भी प्यासी हैं तो स्नेह के भी प्यासी हैं। तो अच्छी सेवा कर रहे हैं, जो भी प्लैन बनाये हैं, वह अच्छे बनाये हैं, जो चल रहे हैं वह अच्छे चल रहे हैं। रिज़ल्ट भी है और हिम्मत भी है। इसलिए बापदादा सेवा के समाचार सुनते हर्षित होते हैं। और गीत कौन-सा गाते हैं? बापदादा गीत गाते हैं, कौन-सा? वाह बच्चे वाह! और इस समय प्रोग्राम्स तो चलने ही हैं, प्रोग्राम्स को नहीं रोकना है। समय के सरकमस्टांश प्रोग्राम को रोकते हैं तो रोकें। लेकिन आप नहीं प्रोग्राम्स रोक सकते हो। अच्छा, अगर मानो कोई प्रोग्राम्स रखते हो और समस्या बदल जाती है तो प्रोग्राम में आने वाले भी समझते हैं, जाने वाले भी समझते हैं। आप क्यों ना करो। दाता के बच्चे हैं ना, तो आप देने में, प्रोग्राम करने में ना नहीं कर सकते हो। आओ, भले आओ, खुशी से आओ। स्वागत करेंगे। जब सरकमस्टांश होंगे तो सरकमस्टांश ही उन्हों को रोंकें, आप नहीं रोको। अभी भी देखो अमेरिका के पीस विलेज में, हंगामा होते हुए भी अमेरिका में भी प्रोग्राम चल रहे हैं ना और बहुत अच्छे चले हैं। रूके हैं? नहीं रूके हैं ना! अभी 4 तारीख तक जो भी प्रोग्राम आपने बनाये, वह कोई रूका है! बाम्ब्स भी चल रहे हैं, चलने दो। लड़ाई तो चल रही है ना! सुनते रहो। अच्छा है, सुनने से आप सब ब्राह्मणों के जो विशेष संस्कार वा स्वभाव है - रहमदिल, मर्सीफुल के वह इमर्ज होंगे और होना ही ज़रूरी है। इस समय आप हर एक को, आत्माओं प्रति रहमदिल और दाता बन कुछ न कुछ देना ही है, चाहे मनसा सेवा द्वारा दो, चाहे शुभ भावना से दो, श्रेष्ठ सकाश देने की वृत्ति से दो, चाहे आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न बोल से दो, चाहे अपने स्नेह सम्पन्न सम्बन्ध-सम्पर्क से दो लेकिन कोई भी आत्मा वंचित नहीं रहे। दाता बनो, रहमदिल बनो। चिल्ला रहे हैं। बाप के आगे अपनी-अपनी भाषा में चिल्ला रहे हैं - शान्ति दो, स्नेह दो, दिल का प्यार दो, सुख की किरणें दिखाओ। तो बाप कैसे देंगे? आप बच्चों द्वारा ही देंगे ना! बाप के आप सभी राइट हैण्ड हो। कोई को कुछ भी देना होता है तो हैण्ड द्वारा देते हैं ना! तो आप सभी बाप के राइट हैण्ड हो ना! पाण्डव राइट हैण्ड हो? आप राइट हैण्डस का यादगार है। पता है कौन-सा यादगार है? विराट रूप का चित्र देखा है, तो उसमें कितने हाथ दिखाते हैं? तो आप राइट हैण्ड का चित्र है ना! कुमारियां, उसमें आप लोगों का चित्र है ना? तो अभी बाप राइट हैण्डस द्वारा आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली तो दिलायेगा ना! बिचारों को अंचली भी नहीं देंगे तो कितने तड़फेंगे! अभी सभी हद की बातों से ऊँचे हो जाओ। हद की बातों में, हद के संस्कारों में समय नहीं गंवाओ। बापदादा आज भी सभी बच्चों को, चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे सेन्टर्स पर बैठे हैं, चाहे देश में हैं, चाहे विदेश में हैं लेकिन रहमदिल भावना से इशारा दे रहे हैं – बापदादा हर बच्चे की हद की बातें, हद के स्वभाव-संस्कार, नटखट वा चतुराई के संस्कार, अलबेलेपन के संस्कार बहुत समय से देख रहे हैं, कई बच्चे समझते हैं सब चल रहा है, कौन देखता है, कौन जानता है लेकिन अभी तक बापदादा रहमदिल है, इसलिए देखते हुए भी, सुनते हुए भी रहम कर रहा है। लेकिन बापदादा पूछते हैं आखिर भी रहमदिल कब तक? कब तक? क्या और टाइम चाहिए? बाप से समय भी पूछता है, आखिर कब तक? प्रकृति भी पूछती है। जवाब दो आप। जवाब दो। अभी तो सिर्फ बाप का रूप चल रहा है, शिक्षक और सतगुरू तो है ही। लेकिन बाप का रूप चल रहा है। क्षमा के सागर का पार्ट चल रहा है। लेकिन धर्मराज़ का पार्ट चला तो? क्या करेंगे? बापदादा यही चाहते हैं कि धर्मराज़ के पार्ट में भी वाह! बच्चे वाह! का आवाज कानों में गूंजे। फिर बाप को उलहना नहीं देना। बाबा, आपने सुनाया नहीं, हम तैयार हो जाते थे ना! इसलिए अभी हद की छोटी-छोटी बातों में, स्वभाव में, संस्कारों में समय नहीं गंवाओ। चल रहे हैं, चलता है, नहीं, जमा होता जाता है। दुगुना, तीगुना, सौगुना जमा होता जाता है, चलता बाप को राज़ी करने की विधि है - राज़युक्त होकर चलना है नहीं। इसलिए इस दृढ़ संकल्प का दिल में दीप जगाओ। हद से बेहद में वृत्ति, दृष्टि, कृति बनानी ही है। इसीलिए बापदादा कहते हैं बनानी पड़ेगी। आज यह कह रहे हैं बनानी पड़ेगी फिर क्या कहेंगे? टू लेट। समय को देखो, सेवा को देखो, सेवा बढ़ रही है, समय आगे दौड़ रहा है। लेकिन स्वयं हद में हैं या बेहद में हैं? हद की बातों के पीछे आप नहीं दौड़ो। तो बेहद की वृत्ति, स्वमान की स्थिति आपके पीछे दौड़ेगी।

बापदादा इस वर्ष में जो इस समय तक किया, उसमें सन्तुष्ट हैं, आफरीन भी देते हैं। लेकिन अभी सेवा में अनुभूति कराना, शमा के ऊपर परवाने बनाना, चाहे सहयोगी बनाओ, चाहे साथी बनाओ, कुछ बनें। अनुभूति की खान खोलो। अच्छा है - यहाँ तक ठीक है। लेकिन सिर्फ चक्कर लगाने वाले परवाने नहीं बनें। पक्के परवाने बनेंगे - अनुभूति का कोर्स कराने से। इतने तक अनुभूति होती है - बहुत अच्छा है, स्वर्ग है। यही यथार्थ ज्ञान है, नॉलेज है, इतना सेवा का रिज़ल्ट अच्छा है। अभी अनुभूति स्वरूप बन अनुभव कराओ। अनुभव करने वाले अर्थात् बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध रखने वाले। ऐसे अनुभवी परवाने तैयार करो। सहयोगी बनाये हैं, उसकी मुबारक है और बनाओ। यह स्थान है, यहाँ से ही प्राप्ति हो सकती है, इतने तक भी मानते हैं लेकिन बाप के साथ ज़रा-सा कनेक्शन तो जोड़ो, जो शमा के पीछे ही भागते रहें। तो इस वर्ष विशेष बापदादा सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराने चाहते हैं। इससे ही साक्षात्कार भी होंगे और साक्षात बाप प्रत्यक्ष होंगे। सुना, क्या करना है? प्लैन मिला?

अभी इस वर्ष की रिज़ल्ट देखेंगे, कितनों को बाप शमा के परवाने बनाये। चलो चक्कर तो लगायें, स्वाहा नहीं हों, बाबा-बाबा का चक्कर तो लगायें। अच्छा। कुमारियां ठीक है ना! अच्छा।

चारों ओर के बच्चों के पत्र भी बापदादा को मिलते रहते हैं। वह बच्चे लिखना शुरू करते हैं और बाप के पास पहले ही पहुँच जाता है। दिल का आवाज है ना! यह तो हाथों से लिखते हैं, लेकिन पहले दिल का आवाज दिलाराम के पास पहुँच जाता है। यह भी अच्छा है, बापदादा की याद तो आती है ना! समाचार लिखने के टाइम कितनी खुशी होती है। तो बापदादा जिन्होंने भी पत्र, ई-मेल, किसी भी साधन द्वारा याद-प्यार या समाचार भेजा है उन सभी को, एक-एक को नाम सहित स्पेशल याद-प्यार और मुबारक दे रहे हैं। आप सब तो सम्मुख दे रहे हो ना! उन्हों को देना पड़ेगा ना। तो सभी को, चारों ओर के बच्चों को दीवाली मुबारक भी दे रहे हैं, कौन-सी दीवाली मनानी है वह तो सुना ही दिया। अच्छा।

चारों ओर के अति प्यारे बापदादा के दिलतख्त नशीन श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा हद के स्वभाव, संस्कार परिवर्तन करने वाले बेहद की परिवर्तक आत्माओं को, सदा एक सेकण्ड, एक संकल्प भी व्यर्थ न गंवाने वाले, जमा करने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा रहमदिल बन, दाता बन हर आत्मा को, चाहे ब्राह्मण आत्मा, चाहे प्यासी आत्माओं को कुछ-न-कुछ अंचली देने वाले, सकाश देने वाले, ऐसे बड़ी दिल रखने वाले बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते।